उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार और कुलक वर्ग
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार और कुलक वर्ग
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार और कुलक वर्ग
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार और कुलक वर्ग
१९८६
२०२४, पेपरबैक पुनर्मुद्रण
लेखक
चरण सिंह
प्रकाशक
चरण सिंह अभिलेखागार
बाइंडिंग
पेपरबैक
प्रकाशन भाषा
हिन्दी
₹ 799
40% off !
- ₹ 319.6
₹ 479.4

In Stockस्टॉक में

‘उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार और कुलक वर्ग’ चौधरी चरण सिंह की अंतिम कृति १९८७ में उनके निधन से एक साल पूर्व प्रकाशित हुई। यह पुस्तक तीन दशकों (१९३३-६६) के दौरान छोटे खेतों और काश्तकारों के पक्ष में चौधरी चरण सिंह के अथक संघर्ष और जमींदारी उन्मूलन के लिए उनकी लड़ाई का वर्णन करती है। उन्होंने यह लड़ाई जमींदारी अभिजात वर्ग के कड़े विरोध के बावजूद लड़ी और जीती।

चौधरी चरण सिंह ने भारत के सबसे बड़े भू-क्षेत्रफल और सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के आंदोलन का नेतृत्व किया - पहले १९४६ में संसदीय सचिव और फिर १९५२ में राजस्व मंत्री के रूप में। उत्तर प्रदेश में भूमि स्वामित्व कानूनों का उनका अद्वितीय ज्ञान राजनीतिक विरोधियों के दृढ़ हमलों को रोकने में सहायक था। मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने इस कार्य में उनका पूर्ण राजनैतिक और व्यक्तिगत समर्थन किया। चौधरी साहब ने १९५१ के जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम का हवाला देते हुए, जिसे उन्होंने शोध करके लिखा, कानून का रूप दिया और लागू किया,  १९७९ में पंडित पंत के जन्मदिन के अवसर पर एक भाषण में कहा कि यह उनके राजनीतिक जीवन की सबसे गौरवपूर्ण उपलब्धि थी।

जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम ने छोटे पट्टेदार किसानों को उनके द्वारा जोती गई भूमि पर स्थायी और अविभाज्य अधिकार प्रदान किया। चौधरी चरण सिंह ने  चकबंदी कानून १९५३ में पारित कराया और सुनिश्चित किया कि छोटे किसान लोकतंत्र और उच्च कृषि उत्पादकता का आधार बनें। उन्होंने दर्शाया कि किस प्रकार यह क़ानून ग्रामीणों और दलितों के हितों की रक्षा करते हुए शहरी व्यवस्था के भ्रष्टाचार और बड़े जमींदारों द्वारा किए गए दमन के विरुद्ध प्रभावशाली सिद्ध हुआ।

चौधरी चरण सिंह के लेखन में जोतदारों के दृष्टिकोण की गहरी समझ के साथ-साथ भारतीय ग्रामीण इलाकों के मनोविज्ञान और लोकाचार की गहन जानकारी भी है। चौधरी साहब ने अपने राजनीतिक समकालीनों में इस सहानुभूति की कमी महसूस की, चाहे वे पूंजीवादी थे या समाजवादी, और उन्होंने इन आलोचकों पर इस पुस्तक में कुलक होने का आरोप लगाया।

कृपया ध्यान दें कि हम

- ऑर्डर प्राप्त होने के 1 सप्ताह के भीतर डिलीवरी की जाएगी।
- भारत के बाहर शिपिंग नहीं करते।
- ना ही हम पुस्तकें वापस लेंगे और ना ही पुस्तकों का आदान-प्रदान करेंगे।

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

१९४६, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 899
40% off !
- ₹ 359.6
₹ 539.4
२०१७, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 1,595
25% off !
- ₹ 398.75
₹ 1,196.25
२०२०, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 899
40% off !
- ₹ 359.6
₹ 539.4
१२ जुलाई २०१९, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 299
40% off !
- ₹ 119.6
₹ 179.4