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भारत रत्न २०२४

भारत रत्न २०२४ अलंकरण समारोह प्रशस्ति पत्र पढ़ें

सत्यमेव जयते

भारत रत्न पुरस्कार - २०२४
अलंकरण समारोह
राष्ट्रपति भवन, दरबार हॉल
३० मार्च, २०२४

देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, “भारत रत्न", मानव प्रयत्न के किसी भी क्षेत्र में की गई सर्वोच्च स्तर की असाधारण सेवाकार्य / निष्पादन के सम्मान के फलस्वरूप प्रदान किया जाता है ।

भारत रत्न
चौधरी चरण सिंह (मरणोपरांत)

१. चौधरी चरण सिंह एक बहुआयामी व्यक्तित्व और कट्टर देशभक्त, सुयोग्य प्रशासक, कुशल राजनेता और सबसे बढ़कर, चरित्रवान, निष्ठावान तथा मानवतावादी थे ।

२. २३ दिसंबर १९०२ को संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के मेरठ जिले के नूरपुर गांव के एक किसान परिवार में जन्मे चौधरी चरण सिंह की प्राथमिक शिक्षा नजदीकी गांव जानी खुर्द के एक विद्यालय में हुई और उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई मेरठ से की। उन्होंने १९२३ में आगरा कॉलेज से विज्ञान में स्नातक और इसके बाद, स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। उन्होंने १९२६ में मेरठ कॉलेज, मेरठ से कानून की डिग्री प्राप्त की ।

३. चौधरी चरण सिंह १९२९ से १९३९ तक गाजियाबाद टाउन कांग्रेस कमेटी के संस्थापक सदस्य थे। वह १९३९ में मेरठ चले गए और १९३९ से १९४६ तक उन्होंने मेरठ जिला कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष, महासचिव और अध्यक्ष के रूप में कार्य किया । वह महात्मा गांधी और महर्षि दयानंद की शिक्षा से बहुत प्रभावित हुए। महात्मा गांधी के आह्वान पर, वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए और तीन बार १९३०, १९४० और १९४२ में जेल गए ।

४. चौधरी चरण सिंह १९३७ में पहली बार संयुक्त प्रांत की विधान सभा के लिए मेरठ जिले के गाजियाबाद- बागपत निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए। वह १९७७ तक विधायक रहे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रणाली के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९५१ और १९६७ के बीच, एक छोटी अवधि को छोड़कर, उन्होंने महत्वपूर्ण विभागों को संभालते हुए राज्य मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया ।

५. १९६७ के आम चुनाव के बाद, चौधरी चरण सिंह ने अपने १६ समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी और जन कांग्रेस नामक एक नए दल की स्थापना की। बाद में पूरा विपक्ष एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) बना । एसवीडी के नेता के रूप में, चौधरी चरण सिंह को ३ अप्रैल १९६७ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया बया । आंतरिक तनाव और कलह के कारण एसवीडी सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। विधानसभा में बाद के घटनाक्रम के दौरान, फरवरी १९७० में वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बने ।

६. चौधरी चरण सिंह १९७७ में पहली बार जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोक सभा के लिए चुने गए और मोरारजी देसाई सरकार में उन्हें गृह मंत्री बनाया गया । उन्होंने श्री राजनारायण को सरकार से हटाने के विरोध में गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, उनके बिना सरकार चलाना मुश्किल हो गया । उन्हें फिर से देसाई सरकार में शामिल कर लिया गया तथा उन्हें वित्त विभाग के साथ उप प्रधान मंत्री बनाया गया ।

७. जनता पार्टी में नये घटनाक्रम के फलस्वरूप, श्री मोरारजी देसाई ने १५ जुलाई, १९७९ को प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कई दौर के विचार-विमर्श के बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने चौधरी चरण सिंह को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। १८ जुलाई, १९७९ को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

८. चौधरी चरण सिंह भारतीय अर्थशास्त्र और नियोजन के महान विद्वान थे । उनकी पुस्तकें 'भारत की आर्थिक नीति – गांधीवादी ब्लूप्रिंट' और 'भारत का आर्थिक दुःस्वप्न कारण और उपाय' भारतीय कृषि विषय पर उत्कृष्ट कृतियां हैं । उनकी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तुकों में 'जमींदारी उन्मूलन', 'कोऑपरेटिव फार्मिंग एक्स–रेड', ‘भारत की गरीबी और उसके समाधान', 'उत्तर प्रदेश में कृषि क्रांति' और 'यूपी और कुलकों में भूमि सुधार' शामिल हैं। १९४२ में उन्होंने बरेली सेंट्रल जेल में भारतीय शिष्टाचार पर एक अनूठी पुस्तक लिखी । यह पुस्तक बाद में 'शिष्टाचार' शीर्षक से प्रकाशित हुई ।

९. चौधरी चरण सिंह का १९ मई १९८७ को निधन हो गया। किसान समुदाय की बेहतरी के उनके प्रयासों के कारण नई दिल्ली में उनकी समाधि का नाम 'किसान घाट' रखा गया ।

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