आर्थिक विकास के सवाल और बौद्धिक दिवालियापन
आर्थिक विकास के सवाल और बौद्धिक दिवालियापन
आर्थिक विकास के सवाल और बौद्धिक दिवालियापन
आर्थिक विकास के सवाल और बौद्धिक दिवालियापन
१९८४
२०२२. पेपरबैक पुनर्मुद्रण
लेखक
चरण सिंह
प्रकाशक
चरण सिंह अभिलेखागार
बाइंडिंग
पेपरबैक
प्रकाशन भाषा
हिन्दी
₹ 199
40% off !
- ₹ 79.6
₹ 119.4

In Stockस्टॉक में

चौधरी चरण सिंह ने इस पुस्तिका को १९८४ लोक सभा चुनावों से पूर्व लिखा तथा किसान ट्रस्ट के तत्कालीन मैनेजिंग ट्रस्टी स्वर्गीय अजय सिंह ने इसे प्रकाशित करी। पढ़ने के पश्चात आपको स्वयं एहसास होगा की हिंदुस्तान में गिने चुने राजनेता ही इतनी गहरी सोच रखते थे - या हैं। यह पुस्तिका चौधरी साहब के ५० वर्षों के चिंतन को दर्शाती है। हमारी आशा है इस के सहारे पाठक चौधरी साहब की नजर से आजाद हिंदुस्तान की योजनाओं के औचित्य को एक नए दृष्टिकोण से देख सकेंगे और भारत की आर्थिक विकास की सही दिशा जान सकेगा।

चौधरी साहब का मानना था राजनेता के जीवन का बुनियादी ढांचा शुद्ध आचरण और नैतिक मूल्यों पर आधारित तथा सार्वजनिक और निजी जीवन एक समान होना चाहिए। वो कथन और कर्म की एकता में विश्वास रखते थे, राजनीति को धर्म तथा नैतिकता के माध्यम से देखते थे और देश को सम्पन्न तथा समर्थ बनाने की दिशा में गम्भीरतापूर्वक सोचते थे।

चौधरी साहब गांधीवादी विचारक थे, केवल गाओं के समर्थक होने से कहीं आगे। आज जनता चौधरी साहब को ‘किसान नेता’ कहकर याद करती हैं, परन्तु एक तरह से यह उनकी के लम्बे सार्वजनिक जीवन के व्यापक सोच को नजरअंदाज करता है। वो ऐसी नीतोयों का प्रतिपादन करते थे जो देश में गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक असमानता, और अभावों के निवारण में सार्थक योग दे और साथ-साथ हमारे बाल लोकतंत्र को मजबूत करे। इन नीतोयों में मूल था कृषि पर आधारित गाओं और देश का व्यापक आर्थिक विकास और गाओं में भूमिहीन समाज और कृषि में अतिरिक्त श्रमिकों के लिए गाओं में स्थित घरेलू, छोटे और लघु उद्योगों में भरपूर रोजगार। वह बड़े उद्योग के खिलाफ नहीं थे, गांधीजी की सोच से प्रभावित चाहते थे देश में ऐसे उद्योग लगें और ऐसी मशीनें कार्य में लायी जाएं जो रोजगार का प्रतिस्थापन न करे। उनकी सोच में इन गांधीवादी नीतियों को अमल में लाने के लिए समाज को विकास का दृष्टिकोण में क्रांति लानी होगी, तथा सरकार की संस्थाओं को इन क्षेत्रों में भरी मात्रा में पूँजी का निवेश करना होगा।

१९४७ की राजनैतिक आजादी से आज तक सारे राजनीतिक दल, राजनेता और अधिकांश बुद्धजीवी - पूंजीवादी समाजवादी और साम्यवादी - बड़े उद्योग तथा शहरीकरण के समर्थन में रहे हैं। हमें अगर मन की खिड़कियाँ खोलें और दुनिया को गांधीवादी परिप्रेक्ष्य से देखें, ना की किसी विदेशी और अनुपयुक्त दृष्टिकोण से, तो हम जान सकेंगे की २०२२ में भी चौधरी साहब की मूल नीतियां सार्थक हैं और दशकों तक रहेंगी।

कृपया ध्यान दें कि हम

- ऑर्डर प्राप्त होने के 1 सप्ताह के भीतर डिलीवरी की जाएगी।
- भारत के बाहर शिपिंग नहीं करते।
- ना ही हम पुस्तकें वापस लेंगे और ना ही पुस्तकों का आदान-प्रदान करेंगे।

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

१० फरवरी १९६२, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 299
40% off !
- ₹ 119.6
₹ 179.4
१९७९, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 499
40% off !
- ₹ 199.6
₹ 299.4
१९७७, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 499
40% off !
- ₹ 199.6
₹ 299.4
२०२०, चरण सिंह अभिलेखागार
पेपरबैक
₹ 899
40% off !
- ₹ 359.6
₹ 539.4